भगवान को क्यों लगते हैं 56 भोग? जानिए इसके पीछे की वजह
आपने देखा होगा कि ज्यादातर धार्मिक अनुष्ठानों में 56 भोग लगाए जाते हैं, जिन्हें शुभ माना जाता है। यह 56 विशेष खाद्य पदार्थों की सूची होती हैं, जिन्हें छप्पन भोग भी कहा जाता है। भोजन का यह व्यापक आयोजन अपने आराध्य के प्रति लोगों की अटूट भक्ति को दर्शाता है। इसमें विभिन्न प्रकार के पेय, अनाज, फल और सूखे मेवे, और मिठाइयाँ शामिल हैं। अपने इष्ट की आराधना में भक्त 56 विभिन्न प्रकार के प्रसाद बनाते हैं और उन्हें भगवान को भेंट करते हैं। लेकिन कई बार आपने सोचा होगा कि आखिर क्यों 56 भोग हो लगाए जाते हैं 55 या 57 क्यों नहीं। आइए जानते हैं इसके पीछे की कथा।
श्री कृष्ण से जुड़ी है यह कथा
आप सभी जानते है कि सप्ताह में सात दिन होते हैं। इंद्र देव ने क्रोध में आकर गोकुल में सात दिन तक घनघोर वर्षा की थी और इस वर्षा से गोकुल वासियों को बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने 7 दिन तक गोकुल में गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊंगली पर उठाए रखा था। इन सात दिनों के दौरान श्रीकृष्ण ने अन्न का एक भी निवाला नही खाया। सात दिन के बाद जब बरसात रुकी तो सभी गोकुल वासियों ने सोचा हर पहर में खाना खाने वाले श्रीकृष्ण ने इन 7 दिनों तक भूखे रह गए।
पहर के हिसाब से खिलाया भोजन
पूरा दिन 24 घंटे के अलावा 8 पहर में बांटा हुआ था। एक पहर 3 घंटे का होता है। तब आठवें दिन गोकुलवासियों ने 7 दिन के एक-एक पहर के हिसाब से श्रीकृष्ण को भोग के तौर पर 56 किस्म के व्यंजन खिलाए, इसलिए भगवान को 56 भोग लगाए जाते है। उसी दिन से 56 भोग की परंपरा की शुरुआत हुई, जो आज भी चली आ रही है।
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